संकष्टी चतुर्थी माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को कहा जाता है। वर्ष 2018 में 5 जनवरी को संकष्टी चतुर्थी पड़ रही है। इसे माघी चतुर्थी या तिल चौथ भी कहते हैं। बारह मास के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। इस दिन भगवान श्री गणेश की आराधना सुख-सौभाग्य प्रदान करने होती है और कष्टों को दूर करने वाली होती है। इस चतुर्थी पर व्रत करके गणेशजी का पूजन करने से सारी विपदाएं दूर होती हैं।
गणेश भगवान का जन्मदिन 
शिव रहस्य ग्रंथ के अनुसार आदिदेव भगवान गणेश का जन्म माघ कृष्ण चतुर्थी को ही हुआ था। पूर्वांचल में इस दिन गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन से गणेश दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। संकष्टी व्रत करने वाले भक्तों पर श्रीगणेश की कृपा बनी रहती है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वाले श्रद्धालुओं के जीवन के सभी कष्टों का भगवान श्री गणेश निवारण करते हैं। 
पूजा विधि 
इस दिन संध्याकाल में स्नान आदि से निवृत्त होकर गणेश जी की पुष्प, अक्षत, शुद्ध जल, पंचामृत, धुव से पूजा आराधना करनी चाहिए। आरती तथा पुष्पांजलि अर्पित कर प्रदक्षिणा करना चाहिए। पूजा समाप्ति के समय भगवान विघ्नहर्ता से सुख और मंगल की कामना करे। भगवान गणेश भक्तो की सारी मनोकामना पूर्ण करते है। इस दिन संध्याकाल में चन्द्र दर्शन करने के पश्चात भोजन ग्रहण करे।
पौराणिक कथा
भगवान शिव और माता पार्वती एक बार नदी किनारे बैठे हुए थे। उसी दौरान माता पार्वती को चौपड़ खेलने का मन हुआ। लेकिन उस समय वहां माता और भगवान शिव के अलाना कोई और मौजूद नहीं था, लेकिन खेल में हार-जीत का फैसला करने के लिए एक व्यक्ति की जरुरत थी। इस विचार के बाद दोनों ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान डाल दी और उससे कहा कि खेल में कौन जीता इसका फैसला तुम करना। खेल के शुरु होते ही माता पार्वती विजय हुई और इस प्रकार तीन से चार बार उन्हीं की जीत हुई। लेकिन एक बार गलती से बालक ने भगवान शिव का विजयी के रुप में नाम ले लिया। जिसके कारण माता पार्वती क्रोधित हो गई और उस बालक को लंगड़ा बना दिया। बालक उनसे क्षमा मांगता है और कहता है कि उससे भूल हो गई उसे माफ कर दें। माता कहती हैं कि श्राप वापस नहीं हो सकता लेकिन एक उपाय करके इससे मुक्ति पा सकते हो। माता पार्वती कहती हैं कि इस स्थान पर संकष्टी के दिन कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को श्रद्धापूर्वक करना।
संकष्टी के दिन कन्याएं वहां आती हैं और बालक उनसे व्रत की विधि पूछता और उसके बाद विधिवत व्रत करने से वो भगवान गणेश को प्रसन्न कर लेता है। भगवान गणेश उसे दर्शन देकर उससे इच्छा पूछते हैं तो वो कहता है कि वो भगवान शिव और माता पार्वती के पास जाना चाहता है। भगवान गणेश उसकी इच्छा पूरी करते हैं और वो बालक भगवान शिव के पास पहुंच जाता है। लेकिन वहां सिर्फ भगवान शिव होते हैं क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव से रुठ कर कैलाश छोड़कर चली जाती हैं। भगवान शिव उससे पूछते हैं कि वो यहां कैसे आया तो बालक बताता है कि भगवान गणेश के पूजन से उसे ये वरदान प्राप्त हुआ है। इसके बाद भगवान शिव भी माता पार्वती को मनाने के लिए ये व्रत रखते हैं। इसके बाद माता पार्वती का मन अचानक बदल जाता है और वो वापस कैलाश लौट आती हैं। इस कथा के अनुसार भगवान गणेश का संकष्टी के दिन व्रत करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है और संकट दूर होते हैं।