भगवान गणेश को प्रथम पूज्य और बुद्धि का देवता माना जाता है और बुधवार को उनकी आराधना विशेष लाभकारी मानी जाती है। श्रीगणेश की पूजा सभी देवताओं से पहले होने के पीछे भी एक मान्यता यह है कि जब एक परेशानी को लेकर सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे तो वहां उनके दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय भी मौजूद थे। भगवान शिव ने उनसे पूछा कि इनकी समस्या का हल कौन करेगा? इस सवाल पर दोनों भाई तैयार हो गए। समस्या के समाधान के लिए भोलेनाथ ने गणेश और कार्तिकेय के सामने एक प्रतियोगिता रखी और कहा कि जो भी पृथ्वी की परिक्रमा कर पहले लौटेगा वही देवताओं की मदद करेगा और उसकी पूजा ही सबसे पहले होगी। 
भोलेनाथ की आज्ञा मिलते ही कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर बैठकर धरती की परिक्रमा करने चले गए लेकिन गणेश वहीं खड़े सोच में डुब गए। अचानक ही उन्हें एक उपाय सूझा और उन्होंने अपने माता-पिता के सात चक्कर लगाकर अपनी जगह पर खड़े हो गए। पृथ्वी का चक्कर लगाने के बाद कार्तिकेय ने वापस आने के बाद देवताओं की मदद की बात कही। भोलेनाथ ने गणेश से पूछा कि तुम पृथ्वी का परिक्रमा करने क्यों नहीं गए? गणेशजी ने फौरन जवाब देते हुए कहा कि माता-पिता के चरणों में ही सारा संसार है इस वजह से मैंने उन्हीं की परिक्रमा कर ली। गणेश के इस जवाब से भगवान शिव काफी प्रसन्न हुए और उन्हें देवताओं में प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद दिया।
भगवान गणेश को बुद्धि का कारक भी माना जाता है और बुध को इसका स्वामी माना जाता है। इस वजह से बुधवार को गणेशजी की पूजा की परंपरा शुरू हुई है। भगवान गणेश को हाथी के सिर की वजह से गजानन भी कहा जाता है। दरअसल इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि एक बार माता पार्वती स्नान करने गईं तो उन्होंने घर के दरवाजे पर गणेश को खड़ा कर दिया और कहा कि उनके नहाने तक किसी को अंदर न आने दें। भगवान शिव के वहां पहुंचने पर गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इसपर क्रोधित होकर भगवान शिव ने नंदी को गणेश से युद्ध करने को कहा, गणेश द्वारा नंदी को युद्ध में परास्त करने के बाद शिव ने गुस्से में गणेश का सिर काट दिया। माता पार्वती के वापस आने पर जब उन्हें पता चला कि गणेश उनके ही पुत्र थे तो उन्होंने हाथी का सिर जोड़कर उन्हें नया जीवन प्रदान किया। इसके बाद से गणेश को गजानन के नाम से जाना जाने लगा।